घर में चाहते हैं मां लक्ष्मी का वास, तो इन जगहों पर जलाएं दीपक

सनातन धर्म में शनिवार का दिन शनिदेव को समर्पित माना गया है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, बुरे कर्म करने वाले व्यक्ति को शनिदेव दंड देते हैं। वहीं, शुभ कर्म करने वाले को शुभ सफल प्रदान करते हैं। इस दिन विशेष चीजों का दान करना चाहिए। इससे साधक के जीवन में किसी भी चीज की कमी नहीं होती है। 

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, शनिवार के दिन कुछ जगहों पर दीपक जलाना शुभ माना जाता है। इस उपाय को करने से घर में सुख, समृद्धि का वास होता है। ऐसे में आइए जानते हैं कि शनिवार के दिन किन जगहों पर दीपक (Deepak Ke Upay) जलाना शुभ माना जाता है?

दुख और संकट जल्द होंगे दूर
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, शनिवार की शाम को घर के मुख्य द्वार पर सरसों के तेल का दीपक जलाना व्यक्ति के जीवन के लिए शुभ माना जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, इस उपाय को करने से धन की देवी मां लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और घर में मां लक्ष्मी का वास होता है। इसके अलावा जीवन में आ रहे दुख और संकट से छुटकारा मिलता है।

कारोबार में खूब होगी वृद्धि
शनिवार का दिन शनिदेव के अलावा हनुमान जी को भी कोई प्रिय है। ऐसे में शनिवार की शाम को चमेली के तेल का दीपक जलाना शुभ माना जाता है। दीपक जलाने के बाद हनुमान जी की आरती और हनुमान जी के मंत्र का जाप करें। फल और बूंदी का भोग लगाएं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, इस उपाय को करने से साधक को बजरंगबली की कृपा प्राप्त होती है। साथ ही कारोबार में वृद्धि देखने को मिलती है।

आर्थिक तंगी से मिलेगा छुटकारा
अगर आप आर्थिक तंगी का सामना कर रहे हैं, तो शनिवार की शाम को पीपल के पेड़ पर जल चढ़ाएं। इसके बाद सरसों के तेल का दीपक जलाकर आरती करें। साथ ही जीवन में सुख-शांति की प्राप्ति के लिए कामना करें। ऐसा माना जाता है कि इस उपाय को सच्चे मन से करने से साधक को पितरों की कृपा प्राप्त होती है। साथ ही सुख और समृद्धि में वृद्धि होती है। वहीं, पितृ दोष को दूर करने के लिए शनिवार के दिन पीपल के पेड़ की पूजा-अर्चना करना शुभ माना जाता है। इसके अलावा शनिवार के दिन पवित्र नदी में दीपदान भी करना चाहिए।

बीज मंत्र:
ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः

शनि महामंत्र:
ॐ नीलांजन समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम। छायामार्तण्ड संभूतं तं नमामि शनैश्चरम॥

शनि गायत्री मंत्र:
ॐ भगभवाय विद्महे मृत्युरुपाय धीमहि तन्नो शनिः प्रचोद्यात्

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