शोध में हुआ खुलासा: अरावली में खनन से दिल्ली के भूजल की गुणवत्ता बेहद खराब

राजधानी की बढ़ती जल-समस्या केवल कमी तक सीमित नहीं रही, बल्कि इसकी गुणवत्ता गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट का रूप ले चुकी है। राजधानी के भूजल में घुलता जहर आने वाले वर्षों के लिए एक खतरनाक संकेत दे रहा है। अरावली पहाड़ियों में हो रहे खनन गतिविधियों को मौजूदा समय में दिल्ली के भूजल को प्रदूषित करने वाले प्रमुख कारकों में सामने आ रही हैं। यह खुलासा नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन के हालिया अध्ययन में हुआ है।

अध्ययन के अनुसार, केंद्रीय भूजल बोर्ड (सीजीडब्ल्यूबी) के 2023-24 के आंकड़ों पर आधारित एक हालिया वैज्ञानिक अध्ययन ने इस चिंता को और गहरा कर दिया है। अध्ययन में जल गुणवत्ता सूचकांक (डब्ल्यूक्यूआई) के जरिये यह आकलन किया गया कि दिल्ली के अधिकांश इलाकों में भूजल की स्थिति ‘खराब’ से लेकर ‘बहुत खराब’ श्रेणी में पहुंच चुकी है। 2.15 से 94.03 तक पाए गए डब्ल्यूक्यूआई मान इस बात की ओर इशारा करते हैं कि राजधानी के बड़े हिस्से में भूजल पीने योग्य नहीं रहा।

खनन से अरावली के रिसाव मार्ग बाधित हो रहे
अध्ययन करने वाले विशेषज्ञ अब्दुल गनी और श्रेय पाठक का कहना है कि अरावली की चट्टानें भूजल रिचार्ज में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं, लेकिन खनन से रिसाव मार्ग बाधित हो रहे हैं, जिससे प्रदूषक भूजल में घुल रहे हैं। अध्ययन में स्थायी खनन, भूजल प्रबंधन और पुनर्भरण परियोजनाओं की तत्काल जरूरत पर जोर दिया गया है।

कुल जोखिम सूचकांक अधिक
अध्ययन में भारी धातुओं के प्रदूषण और मानव स्वास्थ्य जोखिम मूल्यांकन (एचएचआरए) भी किया गया, जिसमें अमेरिकी पर्यावरण संरक्षण एजेंसी (ईपीए) मॉडल का उपयोग हुआ। इसके परिणाम बेहद चिंताजनक हैं। कुल जोखिम सूचकांक (टीएचआई) शिशुओं के लिए 0.86 से 49.25, बच्चों के लिए 0.39 से 33.62, किशोरों के लिए 0.18 से 15.71 और वयस्कों के लिए 0.16 से 13.72 तक रहा। अंतर्ग्रहण (पीने) और त्वचीय संपर्क दोनों से स्वास्थ्य जोखिम बढ़ा हुआ है, जिसमें कैंसर का खतरा भी शामिल है। भू-स्थानिक मानचित्रण से पता चला कि प्रदूषण के हॉटस्पॉट अरावली के खनन क्षेत्रों, भूवैज्ञानिक कमजोरियों से जुड़े हैं।

खनन से छोटी पहाड़ियों के खत्म होने की थी आशंका
नई परिभाषा के बाद दुनिया की सबसे प्राचीन पर्वत शृंखलाओं में से एक अरावली पहाड़ियों के अवैध खनन की आशंका से खत्म होने की लोगों की चिंता के चलते सुप्रीम कोर्ट को अपना फैसला बदलना पड़ा। स्थानीय लोग और पर्यावरणविद इस आधार पर इसका विरोध कर रहे थे कि दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान और गुजरात में फैली 12081 पहाड़ियों में से केवल 1048 ही 100 मीटर की नई परिभाषा के दायरे में आती हैं। अगर नई परिभाषा को मान्यता दी गई तो छोटी पहाड़ियां खनन से समाप्त हो जाएंगी और इस तरह व्यावहारिक रूप से अरावली का अस्तित्व ही खत्म हो जाएगा।

शीर्ष कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हुए उन्होंने मांग की कि मामले की समीक्षा के लिए बनने वाली नई समिति में केवल नौकरशाह नहीं, बल्कि पर्यावरण और पारिस्थितिकी के विशेषज्ञ भी होने चाहिए। पर्यावरणविद भवरीन कंधारी ने कहा कि जिस तरह से अरावली में खनन हो रहा है, वह प्रशासनिक और शासन की नाकामी है। न्यायिक हस्तक्षेप बहुत जरूरी था। सुप्रीम कोर्ट का निर्देश पर रोक लगाना एक स्वागत योग्य कदम है, लेकिन नई समिति में नौकरशाहों के अलावा पारिस्थितिकीविद् और पर्यावरणविदों को भी शामिल किया जाना चाहिए।

अरावली के सुरक्षित होने तक आंदोलन रहेगा जारी
पीपल फॉर अरावली समूह की संस्थापक सदस्य नीलम अहलूवालिया ने कहा कि असली जरूरत अरावली में सभी खनन गतिविधियों पर पूर्ण रोक की है। पूरे क्षेत्र के लिए स्वतंत्र और विस्तृत पर्यावरण व सामाजिक प्रभाव आकलन जरूरी है, ताकि अब तक हुए नुकसान का सही आकलन हो सके।

सुप्रीम कोर्ट का कदम अभूतपूर्व
पर्यावरणविद विमलेंदु झा ने सुप्रीम कोर्ट के कदम को अभूतपूर्व बताते हुए कहा कि अदालत का स्वतः संज्ञान लेना, अपने ही आदेश पर रोक लगाना और नई समिति बनाने का निर्देश देना एक दुर्लभ उदाहरण है। पारिस्थितिकी पुनर्स्थापन विशेषज्ञ विजय धस्माना ने कहा कि नई परिभाषा पर बहस में रियल एस्टेट और खनन लॉबी हावी हैं, जबकि अरावली की भूवैज्ञानिक विशेषताएं अब तक साफ तौर से परिभाषित नहीं की गई हैं।

मरुस्थलीकरण को रोकती है अरावली जैव विविधता में अहम भूमिका
दिल्ली से हरियाणा, राजस्थान और गुजरात तक फैली अरावली पर्वत शृंखला भारत की सबसे पुरानी भूवैज्ञानिक संरचनाओं में से हैं। यह मरुस्थलीकरण को रोकती है। जैव विविधता और जल-पुनर्भरण (वाटर रीचार्ज) में अहम भूमिका निभाती है। सुप्रीम कोर्ट ने भी इसे राष्ट्रीय पारिस्थितिकी के लिए अत्यंत अहम बताया है।

नई परिभाषा में ये क्षेत्र सुरक्षित
अरावली के कुछ हिस्सों बाघ अभयारण्य, राष्ट्रीय उद्यान, वन्यजीव अभयारण्य, इन संरक्षित क्षेत्रों के आसपास के पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्र,और प्रतिपूरक वनीकरण योजना के तहत आर्द्रभूमि और पौधरोपण के रूप में नामित हैं। ये क्षेत्र खनन या विकास के लिए बंद रहते हैं, जब तक कि संबंधित वन्यजीव और वन कानूनों के तहत खास तौर पर इजाजत न दी जाए, भले ही वे अरावली पहाड़ियों का हिस्सा हों या नहीं।

नए खनन पट्टों पर लगी रोक
सुप्रीम कोर्ट ने 20 नवंबर को अरावली पहाड़ियों और पर्वत की एक जैसी परिभाषा को स्वीकार किया था। विशेषज्ञ रिपोर्ट आने तक अरावली क्षेत्र में नए खनन पट्टों पर रोक लगा दी थी। जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने भी नए खनन पट्टों पर प्रतिबंध का एलान किया।

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